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शिंदखेड यहाँ चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ का १७ वे शतक मे स्थापीत पुर्ण अवतार श्री कृष्णाजी का राउळ/देवस्थान है । सिंदखेड देवस्थान यह कृष्णाजीके परम्ं भक्त धनसिंग व्दारा स्थापीत और प्रसारीत चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ की एक शाखा है । इस शाखाको धनसिंग का सिंदखेड दांड एैसा कहाँ जाता है ।
यह चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ का धनसिंग सिंदखेड शाखा का मुख्य देवस्थान है । यह देवस्थान चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ के भजनी योगी, संत, भक्त जन इत्यादी को प्रेरणा, स्फुर्ति, और सत् शक्ती देणेवाला सिंदखेड शाखा का मुख्यस्थल है ।
१८ वे शतक से यह देवस्थान पुर्ण अवतार श्री कृष्णाजी के मुख से निकला हुऑं पौराणीक गुप्त चतुर्पता अथर्वन् वेद का चतुर्पती ग्यान संप्पन ओवी भजन का गायन सिंदखेड देवस्थान के जगह निरंतर हो रहा है । यह देवस्थान चतुर्पती गायन को भजनी योगी, सत् भक्तजन व्दारे मिर्तलोक मे महाराष्ट के विदर्भ विभाग मे गावोगावं और शहरो मे स्थापित चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ व्दारे प्रेरीत कर रहे है । और पुर्ण अवतार श्री कृष्णाजी ईस पंथ के कार्य को निरंतर प्रेरणा, स्फुर्ति और शक्ती का पुरवठा कर रहे है । सत् भक्त के घरमे गुप्तरूपमे जाकर उनको अपना माध्यम बनाकर उनसे सत् यवग के कार्य करने के लिये नित साहयं हो रहे है । एैसी अनुभवी सत् भक्तों की धारणा है ।
यहाँपर पुर्ण अवतार श्री कृष्णाजी की मुख्य बाहुली है । ईस बाहुली पर वो कृष्ण गुप्तरूपमे खडा है । और आगे का सत् यवग के कार्य प्रपंच का संभाल करनेके लिये ईस कलयवग मे कार्यरत् है । उनके सत् यवगके कार्य अंर्तगत वो चतुर्पती कृष्ण अवधुत पंथ के योगी, संत, सत् भक्त और भजनी को निरंतर प्रेरणा, स्फुर्ति का शक्तीपात करते हुएं गुप्तरूपमे अपने परम्ं भक्त धनसिंग के कार्य को साहयं करत हुएं धनसिंग के साथ खडा है । अपने सत् भक्त के घर मे जाकर उस सत् भक्त के माध्यम से सत् यवग का कार्य करने के लिये निरंतर साहयं कर रहा है । एैसी अनुभवी सिंदखेड शाखा के सत् भक्तों की धारणा है ।
कृष्ण अवधुती ओवी और भजने |
कृष्ण अवधुती भजन मंडळे और राउळ के व्हिडीयो
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